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सिस्सू में दो दिवसीय होमस्टे कार्यशाला — स्थानीय समुदाय ने सीखी स्थायी पर्यटन की बारीकियाँ

 16अक्तूबर।

परसराम भारती संवाददाता ।

लाहौल (सिस्सू), 16 अक्टूबर:

हिमालय की शांत वादियों में बसे सिस्सू गाँव ने इस बार एक नई कहानी लिखी है — आत्मनिर्भरता, परंपरा और आधुनिकता की संगम कथा। लाहौल घाटी में दो दिवसीय होमस्टे मार्केटिंग कार्यशाला न केवल एक प्रशिक्षण सत्र रहा, बल्कि यह ग्रामीण पर्यटन की दिशा में स्थानीय समुदाय के नेतृत्व का एक ऐतिहासिक कदम बन गया।


यह कार्यशाला प्रोजेक्ट पीओपीजीटी (जन स्वामित्व और जन संचालन आधारित पर्यटन) के तहत आयोजित की गई, जिसका उद्देश्य स्थानीय लोगों को पर्यटन विकास का स्वामी और संचालक बनाना है। इस पहल का नेतृत्व पीपल फॉर हिमालयन डेवलपमेंट संस्था ने किया, जिसे रॉयल एनफील्ड सोशल मिशन का सहयोग प्राप्त है।

संस्था के प्रबंध निदेशक संदीप मिन्हास ने कहा —

“स्थायी पर्यटन तभी संभव है जब स्थानीय समुदाय खुद इसका नेतृत्व करें और उससे प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त करें। हमारा उद्देश्य बाहरी निर्भरता को कम कर आत्मनिर्भर पर्यटन मॉडल खड़ा करना है।”

कार्यशाला में जुटे स्थानीय होमस्टे संचालक

15 और 16 अक्टूबर को सिस्सू में आयोजित इस प्रशिक्षण में सिस्सू और कोक्सर क्षेत्र के करीब 30 होमस्टे संचालकों ने भाग लिया।

होमस्टेज़ ऑफ इंडिया के सह-संस्थापक विनोद और शैल्जा ने प्रतिभागियों को बताया कि डिजिटल माध्यमों के जरिए अपने होमस्टे का प्रचार कैसे करें, अतिथियों के अनुभव को बेहतर कैसे बनाया जाए, और स्थानीय संस्कृति को आतिथ्य का हिस्सा कैसे बनाया जा सकता है।

प्रतिभागियों के अनुभव

चेरी होमस्टे की संचालिका सुनीता ने कहा —

“इस कार्यशाला ने हमें सिखाया कि हम अपने होमस्टे को पेशेवर और भावनात्मक दोनों तरीकों से प्रस्तुत करें। अब हमें डिजिटल प्रमोशन की समझ मिल गई है और ऑनलाइन प्रचार करने का आत्मविश्वास भी।”

वहीं हैप्पी ट्रेल्स होमस्टे के मनोज मिरूपा और डेकिड ने बताया —

 “हमने पहली बार सीखा कि हमारे गाँव की संस्कृति ही हमारी असली पहचान है। अब हम पर्यटकों को अपने गाँव का अनुभव अलग और सच्चे तरीके से दे पाएंगे।”

पंचायत पर्यटन विकास समितियों की पहल

इस वर्ष पंचायत पर्यटन विकास समितियों द्वारा तैयार किए गए होमस्टे संचालन दिशानिर्देशों को सभी संचालकों ने अपनाया।

इन दिशानिर्देशों में पर्यावरणीय जिम्मेदारी, स्थानीय उत्पादों के उपयोग, कचरा प्रबंधन और सामुदायिक लाभ के मानक तय किए गए हैं।

यह कदम लाहौल के पर्यटन को अधिक संतुलित और जिम्मेदार बनाने की दिशा में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

 डिजिटल प्रमोशन और फीडबैक सिस्टम की सीख

कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को यह भी बताया गया कि

कैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग कर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।

पर्यटकों से फीडबैक लेने और सेवा सुधारने के लिए डिजिटल टूल्स का उपयोग कैसे करें।

स्थानीय भोजन, परिधान, और कला को पर्यटन पैकेज का हिस्सा कैसे बनाया जाए।

विनोद और शैल्जा ने कहा —

“सिस्सू और कोक्सर के होमस्टे संचालक जिम्मेदार पर्यटन के सच्चे उदाहरण हैं। उनकी लगन और आतिथ्य भावना आने वाले समय में पूरे लाहौल क्षेत्र के लिए प्रेरणा बनेगी।”

 छह होमस्टे को मिलेगा विशेष प्रशिक्षण

अगले छह महीनों में क्षेत्र के पाँच चयनित होमस्टे संचालक होमस्टेज़ ऑफ इंडिया के विशेषज्ञों के साथ विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। इसका उद्देश्य इन्हें स्थायी पर्यटन मॉडल के उदाहरण के रूप में तैयार करना है ताकि अन्य संचालक भी उनसे प्रेरणा लें।

 समुदाय की एकजुटता और भविष्य की राह

कार्यशाला के समापन पर पीपल फॉर हिमालयन डेवलपमेंट के प्रतिनिधियों, पंचायत पर्यटन विकास समितियों, और स्थानीय कारोबारियों ने सामूहिक रूप से एक संकल्प लिया कि आने वाले वर्षों में सिस्सू और कोक्सर को “समुदाय आधारित पर्यटन” का आदर्श केंद्र बनाया जाएगा।

संस्था की प्रतिनिधि ललिता और अविनाश शर्मा ने कहा —

 “हमारा लक्ष्य केवल प्रशिक्षण देना नहीं, बल्कि स्थानीय नेतृत्व को सशक्त बनाना है। इस पहल के जरिए पर्यटन का असली लाभ गाँव के हर व्यक्ति तक पहुँचेगा।”

 जन आंदोलन बनता पर्यटन

प्रोजेक्ट पीओपीजीटी यानी “जन स्वामित्व और जन संचालन आधारित पर्यटन” अब केवल एक परियोजना नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले चुका है।

इस मॉडल के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि पर्यटन विकास स्थानीय परंपराओं, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था — तीनों का संतुलन बनाए रखे।

संदीप मिन्हास ने कहा —

 “यह परियोजना इस सोच पर आधारित है कि पर्यटन का असली विकास वही है, जिसमें स्थानीय लोग मालिक भी हों और प्रबंधक भी। जब समुदाय खुद निर्णय लेता है, तभी पर्यटन टिकाऊ बनता है।”

 निष्कर्ष

लाहौल की घाटियों में उभरती यह पहल बताती है कि जब स्थानीय परंपराएँ, प्रकृति और आधुनिक सोच एक साथ आती हैं, तो विकास का नया मॉडल जन्म लेता है।

सिस्सू और कोक्सर अब सिर्फ खूबसूरत पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि स्थायी और आत्मनिर्भर पर्यटन के प्रतीक बन चुके हैं।

इस कार्यशाला के जरिए सैकड़ों लोगों के जीवन में नई ऊर्जा और दिशा आई है —

जहाँ पर्यटन केवल कमाई का जरिया नहीं, बल्कि “

समुदाय की शक्ति, संस्कृति की पहचान और प्रकृति के प्रति सम्मान” का प्रतीक बन गया है।


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