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जनता के हक़ पर डाका? आनी की रोपा पंचायत में करोड़ों का फंड घोटाला, विजिलेंस ने जांच पंचायती राज विभाग को सौंपी



(फाइल फोटो)


डी.पी. रावत, आनी/कुल्लू, 3 अक्तूबर।

हिमाचल प्रदेश की पंचायत राजनीति एक बार फिर विवादों के घेरे में है। जिला कुल्लू के विकास खंड आनी की ग्राम पंचायत रोपा में करोड़ों रुपये के सरकारी फंड में गड़बड़ी और दुरुपयोग का मामला सामने आया है। मौजूदा पंचायत प्रधान अनु ठाकुर, जो भाजपा की बड़ी महिला नेत्री और पूर्व जिला परिषद सदस्य तथा पूर्व बीडीसी अध्यक्षा रह चुकी हैं, पर गंभीर आरोप लगे हैं।

शिकायतकर्ता कर्म ठाकुर, जो कांग्रेस से जुड़े हैं और पंचायत के पूर्व उपप्रधान रह चुके हैं, ने इस पूरे मामले को उजागर किया है। उनका दावा है कि योजनाओं और विकास कार्यों के नाम पर फर्जी खर्च दिखाए गए और सरकारी पैसों का गबन हुआ। यह शिकायत अब राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार-रोधी ब्यूरो (SV&ACB) तक पहुंच गई है। ब्यूरो ने मामले को आगे की कार्रवाई के लिए पंचायती राज विभाग को भेज दिया है।

शिकायत की पृष्ठभूमि

कर्म ठाकुर ने 10 सितंबर 2025 को लिखित शिकायत दर्ज करवाई। उनका आरोप है कि पंचायत प्रधान ने विभिन्न योजनाओं से मिली सरकारी सहायता राशि का गलत इस्तेमाल किया।

शिकायत में कहा गया है कि—

विकास कार्यों के नाम पर फर्जी खर्च दिखाए गए।


कई योजनाओं को सिर्फ कागज़ों पर पूरा कर दिया गया।


पंचायत बजट और निर्माण कार्यों में पारदर्शिता की पूरी तरह अनदेखी हुई।



कर्म ठाकुर का कहना है—

“पंचायत स्तर पर करोड़ों रुपये की योजनाएँ आती हैं। ये जनता की भलाई के लिए होती हैं, लेकिन यदि जिम्मेदार लोग ही इन पैसों का दुरुपयोग करेंगे तो आम जनता का हक़ मारा जाएगा। मैंने दस्तावेज़ और प्रमाण भी दिए हैं। मेरी मांग है कि निष्पक्ष जांच हो।”

सतर्कता ब्यूरो की भूमिका

राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार-रोधी ब्यूरो (SV&ACB), शिमला ने शिकायत पर संज्ञान लिया और 19 सितंबर 2025 को इसे पत्र संख्या 190/2025 के तहत दर्ज किया।


हालांकि, ब्यूरो ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा—


उनके पास संसाधन और जनशक्ति की सीमाएँ हैं।


ग्राम पंचायतों के कामकाज की गहराई से जानकारी तुरंत संभव नहीं है।


यह तय करना मुश्किल है कि मामला संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं।



इसी कारण, मामले को पंचायती राज विभाग को भेज दिया गया है ताकि नियमों के तहत कार्रवाई की जा सके।

कानूनी आधार


पत्र में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Amendment Act, 2018) और हिमाचल प्रदेश पंचायती राज नियम, 2012 का उल्लेख है।


नियमों के अनुसार:


यदि पंचायत स्तर पर वित्तीय अनियमितता का संदेह हो तो पंचायत सचिव या संबंधित अधिकारी को पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करनी होती है।


2017 में आए हाईकोर्ट के एक फैसले के अनुसार पंचायत संस्थाओं की गतिविधियों पर प्रशासनिक अधिकारियों को सख्ती से निगरानी रखनी होगी।

ABD न्यूज़ की ग्राउंड रिपोर्टिंग


अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज़ ने इस मामले पर स्थानीय स्तर पर जांच की। पत्रकार डी.पी. रावत ने शिकायतकर्ता, ग्रामीणों, बीडीओ आनी और बीएमओ आनी से बातचीत कर तथ्यों का संकलन किया।


रिपोर्टिंग में सामने आए मुख्य बिंदु:


1. मंडार गांव में खेत बनाया पुल – पंचायत ने 3 लाख रुपये की लागत से लोहे का पुल बनाया, जबकि उस स्थान पर पुल की कोई आवश्यकता ही नहीं थी।



2. अस्तित्वहीन भवन पर खर्च – पंचायत ने 1.5 लाख रुपये उप स्वास्थ्य केंद्र शिली जांजा की मरम्मत पर खर्च दिखाया, जबकि स्वास्थ्य विभाग ने वहां आज तक भवन का निर्माण ही नहीं किया।

इन दोनों मामलों से स्पष्ट होता है कि सरकारी धन के दुरुपयोग की आशंका गंभीर है।

पंचायत प्रधान की चुप्पी

अब तक पंचायत प्रधान अनु ठाकुर ने इन आरोपों पर मीडिया को कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

स्थानीय राजनीति में हालांकि यह मुद्दा तेजी से उभर रहा है और विपक्ष इसे सरकार पर हमला करने का हथियार बना रहा है।

राजनीतिक रंग

यह मामला सिर्फ वित्तीय गड़बड़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर आगामी पंचायत चुनावों पर भी हो सकता है।

अनु ठाकुर ज़िला परिषद या बीडीसी सदस्य के चुनाव में प्रबल दावेदार मानी जाती हैं।

यदि सीट महिला आरक्षित हुई तो उनकी दावेदारी मजबूत होगी, अन्यथा उनकी संभावनाएं कम हो सकती हैं।

कांग्रेस इस मुद्दे को सत्ता पक्ष के खिलाफ इस्तेमाल कर सकती है।

जनता की नाराजगी

ग्राम पंचायत रोपा के ग्रामीणों ने भी नाराजगी जाहिर की। उनका कहना है—

“हमारे गांव की भलाई के लिए आया पैसा भ्रष्टाचार में डूब गया।”

“अगर आरोप साबित होते हैं तो दोषियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।”


विशेषज्ञों की राय


पंचायती व्यवस्था के जानकारों का मानना है कि यह मामला हिमाचल की पंचायत प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

विशेषज्ञ कहते हैं:

“पंचायत स्तर पर करोड़ों रुपये आते हैं लेकिन निगरानी और पारदर्शिता की कमी है।”

“ऐसे मामलों से जनता का पंचायतों से विश्वास उठता है और विकास कार्य प्रभावित होते हैं।”

आगे क्या?


अब यह मामला पंचायती राज विभाग के पास है।


विभाग प्राथमिक जांच करेगा।


यदि भ्रष्टाचार की पुष्टि होती है तो यह मामला वापस सतर्कता ब्यूरो को भेजा जाएगा।


दोषियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और विभागीय कार्रवाई (निलंबन, मुकदमा) हो सकती है।

निष्कर्ष

आनी की ग्राम पंचायत रोपा का यह कथित घोटाला सिर्फ एक पंचायत की कहानी नहीं है, बल्कि हिमाचल की पंचायती व्यवस्था की कमजोरियों का आईना भी है।

जहाँ एक ओर शिकायतकर्ता और ग्रामीण न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दबाव और प्रशासनिक सुस्ती इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल सकती है।

अब सवाल यह है कि—

क्या पंचायती राज विभाग और सतर्कता ब्यूरो इस मामले को गंभीरता से लेकर निष्पक्ष जांच करेंगे?

या फिर यह मामला राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा?

जनता की निगाहें अब सिर्फ एक चीज़ पर टिकी हैं—

क्या दोषी कटघरे में खड़े होंगे, या जनता के हक़ पर डाला गया यह कथित डाका यूं ही दब जाएगा?



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