70 ग्रामीण जुटे, पर उपप्रधान और चार वार्ड पंचों की गैरमौजूदगी से ठप रही चर्चा | बीपीएल समीक्षा, मनरेगा और विकास योजनाएँ अधर में
परस राम भारती, संवाददाता।
2 अक्तूबर, बंजार।
गांधी जयंती और शास्त्री जयंती जैसे ऐतिहासिक अवसर पर आयोजित होने वाली विशेष ग्राम सभाएँ इस बार भी बंजार खंड की सभी पंचायतों में बुलाई गईं। परंतु, पेखड़ी पंचायत की ग्राम सभा का हाल कुछ अलग ही रहा। यहाँ प्रधान और ग्राम रोजगार सेवक को छोड़कर पंचायत के अधिकांश चुने हुए प्रतिनिधि—उपप्रधान सहित—बैठक से नदारद रहे। नतीजा यह हुआ कि ग्रामीणों की भारी मौजूदगी के बावजूद बैठक अधूरी रह गई और लोग हताश व नाराज़ होकर लौटे।
70 ग्रामीण आए, पर पंच गायब रहे
सुबह से ही पंचायत घर में ग्राम सभा के लिए तैयारियाँ की गई थीं। लगभग 70 ग्रामीण समय पर पहुँचकर बैठक शुरू होने का इंतजार कर रहे थे। पंचायत प्रधान और ग्राम रोजगार सेवक ने तो अपनी हाज़िरी दर्ज करवाई, लेकिन उपप्रधान और चार वार्डों के पंचों की गैरमौजूदगी ने सबको निराश किया। हालांकि मनहार वार्ड के पंच प्रताप सिंह देर से ही सही, पर पहुँच गए थे। मगर शेष प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति ने बैठक की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए।
ग्राम सभा का मकसद बीपीएल परिवारों की समीक्षा करना, पंचायत की आय-व्यय रिपोर्ट पेश करना, मनरेगा कार्यों की प्रगति पर चर्चा करना और आगामी जीपीडीपी (ग्राम पंचायत विकास योजना) 2026-27 की रूपरेखा तैयार करना था। इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन और अन्य सरकारी योजनाओं पर विचार होना था। लेकिन प्रतिनिधियों की कमी के कारण कोई भी निर्णय पारित नहीं हो सका।
लोगों में आक्रोश, कहा- प्रतिनिधि सिर्फ वोट लेने आते हैं
ग्राम सभा में शामिल ग्रामीणों का कहना था कि पंचायत प्रतिनिधि केवल चुनावों के वक्त दिखाई देते हैं, उसके बाद जनता की समस्याओं से जैसे उनका कोई लेना-देना नहीं रहता।
स्थानीय बुजुर्ग किसान ने कहा,
"गांधी जयंती के दिन अगर पंचायत प्रतिनिधि ही गाँव की सभा में नहीं आए तो यह जनता का अपमान है। आज भी ग्रामीण अपनी समस्याएँ बताने आए थे, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था।"
वहीं गृहिणी सुमित्रा देवी ने नाराज़गी जताते हुए कहा,
"पानी, सड़क और रोजगार की समस्याएँ बार-बार उठाई जाती हैं, लेकिन प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति से साबित होता है कि उन्हें लोगों की चिंता नहीं है।"
युवाओं ने भी प्रतिनिधियों पर लापरवाही का आरोप लगाया। उनका कहना था कि ग्राम सभा वह मंच है जहाँ से योजनाओं पर सीधा लाभ मिलता है। अगर चुने हुए लोग ही गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाएँगे तो विकास कैसे होगा?
गांधी और शास्त्री की जयंती पर असफल रही सभा
हर साल 2 अक्टूबर को विशेष ग्राम सभाएँ आयोजित की जाती हैं, ताकि लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत किया जा सके और जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो। पर इस बार पेखड़ी पंचायत में यह मकसद पूरा नहीं हो सका। ग्रामीणों ने कहा कि जब नेताओं के भाषणों में गांधी और शास्त्री के आदर्शों का ज़िक्र होता है, तब जमीनी स्तर पर पंचायत प्रतिनिधियों का इस तरह नदारद रहना शर्मनाक है।
विकास कार्यों की प्रगति पर लग गया ब्रेक
इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा होनी थी
1. बीपीएल परिवारों की समीक्षा:
गरीब परिवारों की वास्तविक स्थिति पर विचार कर सूची अपडेट की जानी थी।
2. पंचायत आय-व्यय रिपोर्ट:
पिछले वित्तीय वर्ष में पंचायत ने कितनी आय-व्यय की, इसका ब्यौरा प्रस्तुत होना था।
3. मनरेगा कार्यों की समीक्षा:
ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने वाली योजनाओं की प्रगति पर चर्चा करनी थी।
4. जीपीडीपी 2026-27 की योजना:
आगामी वर्ष के लिए पंचायत का रोडमैप तैयार किया जाना था।
5. स्वच्छ भारत मिशन और अन्य योजनाएँ:
गाँव को साफ-सुथरा और विकास की दिशा में आगे बढ़ाने के उपायों पर विमर्श होना था।
लेकिन, पंच-परमेश्वर के अभाव में इनमें से कोई भी मुद्दा छुआ तक नहीं जा सका।
ग्रामीण बोले – जवाबदेही तय हो
ग्रामीणों ने प्रशासन से माँग की है कि ऐसे प्रतिनिधियों पर जवाबदेही तय की जाए जो ग्राम सभा जैसी अहम बैठकों में शामिल नहीं होते। उनका कहना है कि अगर चुने हुए लोग ही जनता के बीच मौजूद नहीं रहेंगे तो योजनाएँ सिर्फ कागज़ों में सिमट कर रह जाएँगी।
युवा ग्रामीण पंकज ठाकुर ने कहा,
"ग्राम सभा लोकतंत्र की बुनियादी इकाई है। यह सिर्फ औपचारिकता नहीं है, बल्कि यहीं से गाँव की समस्याओं का हल निकलता है। पंचों का न आना जनता का अपमान है।"
अब दुबारा होगी ग्राम सभा
सूत्रों के अनुसार पंचायत प्रधान ने कहा है कि अधूरी रह गई बैठक को अब दुबारा आयोजित किया जाएगा। अगली तिथि तय करने पर विचार चल रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार सभी प्रतिनिधि समय पर मौजूद रहेंगे ताकि योजनाओं पर चर्चा पूरी हो सके।
विशेषज्ञों की राय – पंचायत व्यवस्था को गंभीरता से लेना होगा
ग्राम पंचायतों पर नजर रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि चुने हुए प्रतिनिधियों का ऐसे मौकों पर अनुपस्थित रहना लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है। उनका कहना है कि पंचायत स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना ही लोकतांत्रिक व्यवस्था की असली ताकत है।
सामाजिक कार्यकर्ता रूपलाल शर्मा ने कहा,
"आज गाँव के लोग जागरूक हैं। यदि प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाएँगे तो आने वाले चुनावों में जनता उन्हें सबक सिखाएगी।"
निष्कर्ष
पेखड़ी पंचायत की यह घटना बताती है कि सिर्फ चुनाव जीतना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना भी ज़रूरी है। गांधी और शास्त्री जैसे नेताओं की जयंती पर आयोजित विशेष ग्राम सभा का अधूरा रह जाना लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। अब देखना यह होगा कि पंचायत दोबारा बुलाई जाने वाली सभा में किस तरह से ग्रामीणों की नाराज़गी को दूर करती है।
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