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1 शिक्षक, 1 छात्र — 70 साल पुराने स्कूल में सन्नाटा! ग्राम पंचायत रोपा में सरकारी शिक्षा पर सवाल

आनी (कुल्लू), 17 अक्तूबर।

रिपोर्ट: ABD NEWS



हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के विकासखण्ड आनी के तहत आने वाली राजकीय प्राथमिक पाठशाला शिली जांजा आज एक ऐसी विडंबना का प्रतीक बन चुकी है, जो प्रदेश की ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत को उजागर करती है।


स्थापना वर्ष 1955, यानी लगभग 70 साल पुराना यह स्कूल कभी बच्चों की चहल-पहल और शिक्षण गतिविधियों से गुलजार रहता था। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि इस विद्यालय में केवल एक शिक्षक और एक छात्र बचा है।


ग्राम पंचायत रोपा की प्रधान अनु ठाकुर, जिनकी प्रशासनिक और राजनीतिक पैठ क्षेत्र में काफी मानी जाती है, बताया जा रहा है कि उनके कार्यकाल में इस स्कूल के लिए लाखों रुपये का बजट अधिसंरचना विकास के नाम पर स्वीकृत हुआ। भवन का सौंदर्यीकरण हुआ, रंग-रोगन किए गए, छत और दीवारें नई बनीं—लेकिन छात्रों की संख्या बढ़ाने के प्रयास कहीं गुम हो गए।


ग्रामीणों का कहना है कि प्रधान की प्राथमिकता केवल भवन निर्माण तक सीमित रही। एक अभिभावक ने नाराज़गी जताते हुए कहा,

“हमारे बच्चों को पढ़ाई चाहिए, इमारत नहीं। जब स्कूल में बच्चे ही नहीं होंगे, तो ये लाखों का ढांचा किस काम का?”

इसी गांव में एक निजी विद्यालय संचालित है, जहां करीब 25 से 30 बच्चे नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं। यह सवाल उठाता है कि आखिर सरकारी स्कूल में भरोसा क्यों खत्म हो गया?




स्कूल के एक पूर्व छात्र ने ABD News से भावुक होकर कहा,

“1955 में जब हम यहां पढ़ते थे, तब दर्जनों विद्यार्थी हर कक्षा में हुआ करते थे। अब वो दिन बस यादों में रह गए हैं।”

शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार, शिली जांजा स्कूल में लगातार गिरती छात्र संख्या की जानकारी उच्च अधिकारियों तक पहुंचाई गई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि ग्राम पंचायत प्रधान की राजनीतिक निकटता और प्रभाव के चलते कोई अधिकारी कार्यवाही करने का साहस नहीं जुटा पाता। वहीं, पंचायत स्तर पर हर बैठक में इस विषय को टाल दिया जाता है।

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति केवल एक स्कूल की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के कई पर्वतीय इलाकों में यही हालात हैं, जहां राजनीति, लापरवाही और शिक्षा के प्रति उदासीनता ने सरकारी स्कूलों को खाली भवनों में तब्दील कर दिया है।

अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में ऐसे स्कूल कागज़ों पर तो रहेंगे, पर कक्षाओं में बच्चे नहीं।

अब सवाल यह है कि क्या शिक्षा विभाग और पंचायत प्रशासन जागेगा, या फिर “1 शिक्षक, 1 छात्र” जैसी शर्मनाक तस्वीरें ही ‘शिक्षा के अधिकार’ पर तमाचा बनकर सामने आती रहेंगी?

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