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तीर्थन घाटी में आपदा की मार: सड़कें टूटीं, सेब सड़े, सैलानी रूठे — घाटी की रौनक पर पहाड़ जैसा संकट


जिला कुल्लू की खूबसूरत तीर्थन घाटी, जो कभी सैलानियों के कदमों से गुलज़ार रहती थी, आज वीरान पड़ी है। हाल ही में हुई भीषण बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने घाटी की सूरत ही बदल दी है। लोगों के घरों, खेतों और सड़कों को नुकसान पहुँचा है। सबसे बड़ी मार पड़ी है घाटी की अर्थव्यवस्था पर — पर्यटन कारोबार ठप है और सेब सीजन पर भी बुरा असर पड़ा है। ग्रामीणों का कहना है कि इस बार न केवल फसलें बर्बाद हुईं, बल्कि बाज़ार तक पहुँचने का रास्ता भी बंद हो गया है।

बारिश और भूस्खलन ने बदली घाटी की तस्वीर

पिछले महीने हुई लगातार बारिश से तीर्थन नदी उफान पर आ गई थी। पहाड़ों से गिरे मलबे और पत्थरों ने घाटी की कई सड़कों को बंद कर दिया। बंजार से बठाहड़ तक की मुख्य सड़क भले ही छोटे वाहनों के लिए खोली गई हो, लेकिन गुशेनी तक बस सेवा अब तक शुरू नहीं हो सकी है।


स्थानीय लोगों का कहना है कि बस सेवा बंद होने से उनका दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। किसी भी काम के लिए अब उन्हें टैक्सी या निजी गाड़ियों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे आवागमन महंगा साबित हो रहा है।


धीमी बहाली से ग्रामीणों में नाराज़गी


आपदा के बाद प्रशासन ने सड़क बहाली का काम शुरू तो किया, लेकिन उसकी गति बेहद धीमी है। गुशेनी से पेखड़ी, देहूरी से कलवारी शनाढ, गुशेनी से बठाहड़, गुशेनी से शर्ची और बठाहड़ से मशयार सड़कों की हालत अभी भी खराब है। जगह-जगह भूस्खलन से मलबा गिरा पड़ा है और कई हिस्सों में सड़क ही बह गई है।

ग्रामीणों का कहना है कि लोक निर्माण विभाग की सुस्ती और मशीनों की कमी के कारण काम अटका पड़ा है। नगलाड़ी से शर्ची सड़क पर तो अभी तक सिर्फ दो किलोमीटर ही बहाल हो पाई है। शर्ची की तरफ से भी सड़क केवल पाँच किलोमीटर तक छोटे वाहनों के लिए खुल पाई है। बीच में एक बड़ी चट्टान आने से मशीनें आगे नहीं बढ़ पा रही हैं।

ग्राम पंचायत शर्ची के राकेश कुमार, रविंद्र ठाकुर, दिलीप सिंह, ताराचंद, जगदेव, संजय, बृजभूषण, राजदेव, चंदे राम, योगेश कुमार, सुरेश कुमार, टीकम राम और रोहित ठाकुर ने बताया कि सड़क बंद होने से उनका सेब और सब्जियों का पूरा सीजन चौपट हो गया।

बाज़ार तक नहीं पहुँची फसलें, खेतों में सड़ गया सेब

घाटी में इस बार सेब की उत्तम पैदावार हुई थी, लेकिन सड़कें बंद होने से किसान अपनी उपज मंडी तक नहीं ले जा पाए। नतीजा — लाखों का नुकसान।


शर्ची, शिल्ली, मशयार, तुंग, नोहंडा, श्रीकोट और पेखड़ी पंचायतों के कई किसानों की फसलें खेतों में ही सड़ गईं।

शिल्ली के एक बागवान ने बताया, “हमने सालभर मेहनत की, लेकिन सड़कों के बंद होने से सेब उठाने ट्रक नहीं आए। अब पेड़ों पर फल सड़ रहे हैं। सरकार अगर तुरंत कुछ नहीं करती तो अगली फसल लगाने का भी मन नहीं करेगा।”


पर्यटन कारोबार को भी लगा झटका

तीर्थन घाटी अपनी शांत प्राकृतिक सुंदरता और ट्राउट मछली पालन के लिए प्रसिद्ध है। हर साल यहाँ देश-विदेश से सैलानी आते हैं, लेकिन इस बार घाटी में सन्नाटा पसरा है। गुशेनी और शर्ची के होमस्टे खाली पड़े हैं। स्थानीय कारोबारी बताते हैं कि इस सीजन में घाटी में बुकिंग लगभग 80 प्रतिशत तक घट गई है।

स्थानीय होटल संचालक बृजभूषण ठाकुर का कहना है, “हमारा कारोबार पूरी तरह ठप है। पहले जहाँ हर वीकेंड सैलानियों की भीड़ होती थी, अब होटल में एक भी बुकिंग नहीं है। सड़कें बंद हैं तो कोई यहाँ आने की हिम्मत नहीं करता।”

ग्रामीणों ने दी चेतावनी — अगर जल्द सुधार नहीं हुआ तो सड़कों पर उतरेंगे


ग्रामीणों ने प्रशासन को कड़ा अल्टीमेटम दिया है। उनका कहना है कि अगर आने वाले दिनों में सड़कें और बस सेवा बहाल नहीं हुईं, तो वे धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।

ग्राम पंचायत शर्ची के प्रतिनिधियों ने बताया कि गाँवों में रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करना मुश्किल हो गया है। स्कूल जाने वाले बच्चे, बुजुर्ग और बीमार लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।


“हम कई बार विभाग को शिकायत कर चुके हैं। हर बार कहा जाता है कि मशीनें भेजी जा रही हैं, लेकिन कोई काम नज़र नहीं आता,” ग्रामीणों ने नाराज़गी जताई।


प्रशासन की दलील — जल्द खुलेगी सड़क, बस सेवा भी शुरू होगी


लोक निर्माण विभाग बंजार के अधिशासी अभियंता चमन ठाकुर ने बताया कि विभाग पूरी कोशिश कर रहा है कि सड़कें जल्द बहाल हो सकें।

उन्होंने कहा, “बंजार से गुशेनी तक सड़क बस योग्य बना दी गई है। अब बस सेवा शुरू करने की प्रक्रिया चल रही है। नगलाड़ी से शर्ची तक करीब तीन किलोमीटर हिस्सा अभी भी बंद है। शर्ची की ओर से पाँच किलोमीटर तक सड़क छोटे वाहनों के लिए खुल चुकी है। बीच में एक बड़ी चट्टान आने से काम रुका है, जिसे ब्लास्ट कर हटाने की तैयारी चल रही है।”


प्राकृतिक आपदा तो आई, लेकिन प्रशासनिक सुस्ती ने दर्द बढ़ा दिया”


स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश कुमार का कहना है कि प्राकृतिक आपदा तो हर साल किसी न किसी रूप में आती है, लेकिन इस बार जो नुकसान हुआ है, उसमें “प्रशासनिक लापरवाही” की भूमिका भी है।

उनका कहना है, “अगर समय रहते मशीनें भेज दी जातीं और सड़क की सफाई तुरंत शुरू होती, तो इतने बड़े नुकसान से बचा जा सकता था। अब हालत ये है कि ग्रामीणों के पास न सड़क है, न आय का कोई साधन।”


बढ़ते जोखिमों के बीच उम्मीद की किरण


भले ही हालात मुश्किल हैं, लेकिन घाटी के लोग हिम्मत नहीं हार रहे। ग्रामीण अपने स्तर पर सड़क से मलबा हटाने का काम भी कर रहे हैं। कई जगह युवाओं ने खुद के खर्च पर JCB मशीनें किराए पर लीं ताकि गाँवों को बाहरी दुनिया से जोड़ा जा सके।

ग्राम पंचायत श्रीकोट के प्रधान ने बताया, “हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द शर्ची और गुशेनी तक बसें चलें। तभी सैलानी आएंगे और कारोबार फिर से पटरी पर लौटेगा।”


सरकार से मुआवजे और स्थायी समाधान की मांग


ग्रामीणों ने राज्य सरकार से उचित मुआवजे की मांग की है। उनका कहना है कि जिन किसानों की फसलें नष्ट हुई हैं, उन्हें आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। साथ ही, घाटी की सड़कों को स्थायी रूप से मजबूत और सुरक्षित बनाने की योजना तैयार की जाए।


“हर साल बारिश में यही हाल होता है। सड़क टूटती है, फिर महीनों मरम्मत चलती है। सरकार को अब स्थायी समाधान निकालना होगा,” बठाहड़ के निवासी राजदेव ठाकुर ने कहा।


घाटी की पुकार — ‘सड़क दो, जीवन दो’


तीर्थन घाटी आज एक ही आवाज़ लगा रही है — ‘सड़क दो, जीवन दो’।यह सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि उन हजारों ग्रामीणों की ज़रूरत है जो पहाड़ों की इस सुंदर घाटी में जीवन यापन कर रहे हैं।

पर्यटन, खेती-बाड़ी और रोज़मर्रा की ज़िंदगी — सबका पहिया सड़क से जुड़ा है। जब तक रास्ते नहीं खुलते, तब तक घाटी की रौनक लौटना मुश्किल है।


भविष्य के गर्भ में कुछ सवाल?

अब प्रशासन पर सबकी नज़रें टिकी हैं। क्या तीर्थन घाटी फिर से मुस्कुराएगी, या विकास की सड़क एक बार फिर मलबे में दब जाएगी — इसका जवाब आने वाले कुछ हफ़्तों में ही मिलेगा।

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