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हिमाचल प्रदेश रोज़गार विभाग के आउटसोर्स कर्मचारी दो माह से वेतन से वंचित, परिवारों पर आर्थिक संकट गहराया”

 डी० पी० रावत।

अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज़ 



हिमाचल प्रदेश में सरकारी विभागों में काम करने वाले आउटसोर्स कर्मचारियों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। प्रदेश के रोज़गार विभाग में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों को पिछले दो माह से वेतन नहीं मिला है, जिसके चलते कर्मचारियों के घरों में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। कर्मचारियों ने विभाग और सरकार से जल्द से जल्द बकाया वेतन जारी करने की मांग की है।

परिवार चलाने में हो रही दिक्कत


बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहे प्रदेश में रोजगार विभाग के कर्मचारी ही अब अपने घर का खर्च चलाने में असमर्थ हो गए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि दो माह से वेतन न मिलने के कारण उन्हें बच्चों की फीस भरने, किराए चुकाने और रोज़मर्रा का खर्च निकालने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

कुल्लू ज़िले के एक कर्मचारी ने बताया,


 “हम रोज़गार विभाग में ईमानदारी से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लेकिन समय पर वेतन न मिलने के कारण हमें उधार लेना पड़ रहा है। दुकानदार तक अब सामान उधार देने से कतराने लगे हैं।”


संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की सबसे खराब हालत


प्रदेश के सरकारी विभागों में स्थायी कर्मचारियों को जहां समय पर वेतन मिल जाता है, वहीं संविदा और आउटसोर्स कर्मचारी अक्सर इस समस्या से जूझते रहते हैं। आउटसोर्स कर्मचारियों को ठेकेदारों और एजेंसियों के माध्यम से नियुक्त किया जाता है। ऐसे में वेतन जारी होने में देरी का खामियाजा इन्हीं कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है।


रोज़गार विभाग में डेटा एंट्री ऑपरेटर, चपरासी, क्लर्क और हेल्प डेस्क स्टाफ जैसे पदों पर काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारी आउटसोर्स व्यवस्था के तहत काम कर रहे हैं।


सरकार के वादे और हकीकत

प्रदेश सरकार ने बार-बार कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि आउटसोर्स व्यवस्था को दुरुस्त किया जाएगा और समय पर वेतन दिया जाएगा। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज भी कर्मचारी महीनों तक अपनी तनख्वाह का इंतज़ार करते रहते हैं।

प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि

“बजट की प्रक्रिया और बिल पास होने में देरी की वजह से वेतन लटक जाता है। लेकिन इसका सीधा असर कर्मचारियों और उनके परिवारों पर पड़ता है।”


 त्योहारों पर संकट और मायूसी


दो माह से वेतन न मिलने की वजह से कर्मचारियों के परिवार त्योहारी सीज़न में भी मायूस हैं। कर्मचारियों ने कहा कि त्यौहारों पर बच्चों के लिए कपड़े और सामान खरीदना तो दूर, रसोई का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है।


मंडी ज़िले के एक कर्मचारी ने कहा,


 “हम हर दिन दफ्तर में काम करते हैं, लेकिन त्यौहार हमारे लिए उदासी लेकर आते हैं। बिना वेतन घर कैसे चलेगा, बच्चों को कैसे समझाएं?”


विपक्ष ने साधा निशाना


प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों के वेतन न मिलने के मुद्दे पर विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा है। विपक्ष का कहना है कि सरकार बड़े-बड़े दावे तो करती है, लेकिन कर्मचारियों को उनका हक तक समय पर नहीं दे पा रही। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार की लापरवाही का सीधा खामियाजा गरीब और मेहनतकश कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।


कर्मचारी संगठनों की चेतावनी


रोज़गार विभाग के आउटसोर्स कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही बकाया वेतन जारी नहीं किया गया तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार कर्मचारियों से काम तो पूरे दिन लेती है लेकिन वेतन देने में लापरवाही बरतती है।


शिमला से जुड़े एक कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी ने कहा,


“हम सरकार को चेतावनी देते हैं कि अगर जल्द वेतन जारी नहीं किया गया तो हमें प्रदर्शन करना पड़ेगा। विभाग की कामकाज की जिम्मेदारी सरकार की है, न कि कर्मचारियों की जेब से।”

आउटसोर्स व्यवस्था पर सवाल


कर्मचारियों का कहना है कि आउटसोर्स व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं है। ठेकेदार एजेंसियां कर्मचारियों का वेतन रोककर रखती हैं और समय पर भुगतान नहीं करतीं। कई बार कर्मचारियों को पूरा वेतन भी नहीं मिलता।


युवाओं का कहना है कि सरकार को आउटसोर्स व्यवस्था खत्म करके कर्मचारियों को सीधा विभागीय नियंत्रण में रखना चाहिए। इससे न केवल समय पर वेतन मिलेगा बल्कि कर्मचारियों का भविष्य भी सुरक्षित होगा।


सामाजिक और मानसिक दबाव


वेतन न मिलने के कारण कर्मचारियों में मानसिक तनाव बढ़ रहा है। कई कर्मचारी रोज़ाना दफ्तर जाने के लिए भी उधार पर निर्भर हो गए हैं। पेट्रोल, बस किराया और अन्य खर्च उठाना मुश्किल हो गया है।


परिवार पर पड़ने वाले सामाजिक दबाव का भी कर्मचारियों पर असर हो रहा है। कई बार बच्चे सवाल पूछते हैं कि “पापा, हमें नए कपड़े क्यों नहीं मिलते?” या “मम्मी, स्कूल की फीस कब भरेंगे?” और इन सवालों का जवाब माता-पिता के पास नहीं होता।


ज़िम्मेदारी कौन लेगा?


यह सवाल लगातार उठ रहा है कि आखिर आउटसोर्स कर्मचारियों की इस हालत की ज़िम्मेदारी कौन लेगा? विभाग ठेकेदारों पर ठीकरा फोड़ता है और ठेकेदार बजट न मिलने की दलील देते हैं। लेकिन बीच में फंसता है तो सिर्फ कर्मचारी, जो रोज़ काम करके भी दो माह से वेतन से वंचित है।


समाधान की उम्मीद


कर्मचारी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि प्रदेश सरकार जल्द ही उनकी समस्या का समाधान करेगी। रोजगार विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि वेतन जारी होने से ही उनके परिवार चैन की सांस ले पाएंगे।


विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को आउटसोर्स व्यवस्था में सुधार करने के साथ-साथ एक समयबद्ध वेतन प्रणाली लागू करनी चाहिए। ताकि भविष्य में कर्मचारियों को इस तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े।

 निष्कर्ष


हिमाचल प्रदेश के रोजगार विभाग में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों की यह समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन हर बार इसका खामियाजा इन्हीं मेहनतकश लोगों को भुगतना पड़ता है। दो माह से वेतन न मिलने के कारण कर्मचारी और उनके परिवार गंभीर आर्थिक संकट में हैं।


सरकार और विभाग को चाहिए कि वे तुरंत बकाया वेतन जारी करें और भविष्य में ऐसी स्थिति न बने, इसके लिए ठोस कदम उठाएं। अन्यथा, कर्मचारी आंदोलन की राह पर उतर सकते हैं, जिसका सीधा असर विभाग के कामकाज और बेरोज़गार युवाओं को मिलने वाली सेवाओं पर भी पड़ेगा।

 यह खबर न केवल कर्मचारियों की पीड़ा को उजागर करती है बल्कि सरकार से यह सवाल भी पूछती है कि “क्या मेहनत की कमाई का हकदार कर्मचारी यूं ही दर-दर की ठोकरें खाता रहेगा?”

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