“दलित शोषण मुक्ति मंच ने कहा — संविधान, न्यायपालिका और सामाजिक न्याय पर हमला देश की आत्मा पर प्रहार है”
डी० पी०रावत।
निरमण्ड, 7 अक्टूबर।
सुप्रीम कोर्ट के भीतर भारत के मुख्य न्यायाधीश माननीय बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की शर्मनाक घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश फैल गया है। हिमाचल प्रदेश के दलित शोषण मुक्ति मंच ने इस कृत्य की तीखी निंदा करते हुए इसे संविधान, न्यायपालिका और लोकतंत्र के मूल्यों पर सीधा हमला बताया है।
मंच ने अपने बयान में कहा कि यह घटना न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाती है, बल्कि उस सोच का प्रतिबिंब है जो समाज में दलित विरोध, जातिवाद और मनुवादी श्रेष्ठता को बढ़ावा देती रही है। मंच ने आरोप लगाया कि यह मानसिकता आर.एस.एस. और मनुवादी विचारधारा से प्रेरित है, जो समानता और सामाजिक न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों को कमजोर करने का प्रयास करती है।
मुख्य न्यायाधीश गवई पर हमला – लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार
दलित शोषण मुक्ति मंच के रामपुर एरिया संयोजक देवकी नंद ने अपने बयान में कहा,
“यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा पर प्रहार है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई दलित समाज से आने वाले पहले ऐसे मुख्य न्यायाधीश हैं जिन्होंने न्यायपालिका में सामाजिक न्याय की आवाज को मजबूती दी है। उनके खिलाफ अदालत के भीतर ऐसी हरकत यह दर्शाती है कि कुछ शक्तियाँ समानता और न्याय के सिद्धांतों से घृणा करती हैं।”
देवकी नंद ने कहा कि अदालत के भीतर “सनातन धर्म के समर्थन” में नारे लगाना यह स्पष्ट करता है कि इस हमले के पीछे नफरत भरी राजनीति और सांप्रदायिक सोच काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं न केवल न्यायिक संस्थाओं की मर्यादा को तोड़ती हैं, बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे को भी खतरे में डालती हैं।
मनुवादी और साम्प्रदायिक ताकतों की साजिश
मंच ने कहा कि यह कोई आकस्मिक घटना नहीं है, बल्कि एक संगठित विचारधारा का परिणाम है जो लगातार दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का माहौल बना रही है। मंच का कहना है कि भाजपा और संघ परिवार के नेताओं द्वारा हाल ही में दिए जा रहे जातिवादी और सांप्रदायिक बयानों ने समाज में ज़हर घोलने का काम किया है।
मंच ने चेतावनी दी कि ऐसी ताकतें अगर बेखौफ होकर संविधान और न्यायपालिका पर हमला करेंगी, तो यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत हैं।
“यह घटना हिंदुत्ववादी ताकतों की असहिष्णुता और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अनादर की पराकाष्ठा है,” मंच के वक्तव्य में कहा गया।
दलित शोषण मुक्ति मंच की तीन मुख्य मांगें
इस गंभीर घटना के बाद मंच ने सरकार और न्यायपालिका से तीन प्रमुख मांगें रखी हैं —
1. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में पंजीकृत संबंधित वकील के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति न्यायपालिका की गरिमा से खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके।
2. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की सुरक्षा को सुदृढ़ किया जाए, ताकि इस प्रकार के हमले दोबारा न हों और न्यायपालिका के शीर्ष पद की गरिमा बनी रहे।
3. देशभर में मनुवादी और सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले संगठनों पर तत्काल सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि संविधान विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।
“संविधान और न्यायपालिका पर हमला बर्दाश्त नहीं होगा”
मंच ने अपने बयान में स्पष्ट कहा कि संविधान, न्यायपालिका और सामाजिक न्याय पर किसी भी प्रकार के हमले को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
“हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि चाहे कितनी भी नफरत फैलाई जाए, समानता और न्याय की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता। भारत का संविधान हमारे संघर्षों की उपज है और इसे कमज़ोर करने की कोई भी कोशिश देश के हर प्रगतिशील नागरिक द्वारा नाकाम की जाएगी,” — देवकी नंद ने कहा।
लोकतांत्रिक एकजुटता की अपील
दलित शोषण मुक्ति मंच ने सभी लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और समानतावादी नागरिकों से इस घटना की कड़ी निंदा करने और न्याय एवं समानता की लड़ाई में एकजुट होने की अपील की है।
“आज ज़रूरत है कि हर नागरिक यह समझे कि संविधान पर हमला किसी एक वर्ग का नहीं, बल्कि पूरे देश के भविष्य का प्रश्न है। अगर हम आज चुप रहे, तो कल लोकतंत्र की नींव हिल जाएगी,” मंच ने कहा।
पृष्ठभूमि: न्यायपालिका में दलित प्रतिनिधित्व का महत्व
भारत की न्यायपालिका लंबे समय तक ऊँची जातियों के प्रभुत्व में रही है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई का इस पद पर पहुँचना न केवल ऐतिहासिक था, बल्कि उस सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक कदम था जिसका सपना डॉ. भीमराव अंबेडकर ने देखा था।
दलित शोषण मुक्ति मंच का कहना है कि इस ऐतिहासिक उपलब्धि से घबराई मनुवादी ताकतें अब खुलेआम न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की अवधारणा को चुनौती दे रही हैं।
न्यायपालिका की गरिमा बचाना सभी की जिम्मेदारी
मंच ने कहा कि अदालतें केवल न्याय देने का मंच नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की प्रतीक हैं। यदि न्यायालयों के भीतर इस तरह की घटनाएँ घटेंगी, तो आम नागरिकों का विश्वास भी डगमगाएगा।
“मुख्य न्यायाधीश गवई जैसे व्यक्ति, जो दलित समाज से आते हुए देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी पर पहुँचे हैं, उन पर हमला करना यह दिखाता है कि कुछ लोग अब भी जातिवादी मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाए हैं,” — मंच के वक्तव्य में कहा गया।
मंच की चेतावनी: संघर्ष जारी रहेगा
दलित शोषण मुक्ति मंच ने कहा है कि वह इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाएगा और न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा के लिए जन-आंदोलन चलाएगा। मंच ने कहा कि संविधान की रक्षा और सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए वह सड़क से संसद तक संघर्ष करेगा।
देवकी नंद ने कहा, “हम बाबा साहेब के अनुयायी हैं। जिसने संविधान दिया, जिसने बराबरी की नींव रखी — उस संविधान की रक्षा हमारा पहला कर्तव्य है। किसी भी कीमत पर हम संविधान, न्यायपालिका और सामाजिक न्याय पर हमला बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
निष्कर्ष
दलित शोषण मुक्ति मंच की यह प्रतिक्रिया केवल एक घटना की निंदा नहीं है, बल्कि एक चेतावनी भी है कि संविधान विरोधी ताकतों की मनमानी अब और नहीं चलेगी।
देश के नागरिकों के सामने आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए एकजुट हो पाएंगे?
मंच का यह संदेश स्पष्ट है — “हम झुकेंगे नहीं, संविधान के पक्ष में डटकर खड़े रहेंगे।”
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