✍️ डी.पी. रावत, आनी (जिला कुल्लू), 30 सितम्बर।
हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू का छोटा सा कस्बा आनी इन दिनों एक ऐसे गंभीर खतरे से जूझ रहा है, जिसकी चुप्पी कभी भी बड़ी त्रासदी में बदल सकती है।
यहाँ स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला आनी (केन्द्र) के साथ लगता रास्ता बच्चों, बुज़ुर्गों और आम लोगों की रोज़मर्रा की आवाजाही का सहारा तो है, लेकिन यही रास्ता आज "मौत का रास्ता" बन चुका है।
हर दिन मौत के साए में गुजरते मासूम
इस रास्ते से रोज़ाना नाल देहरा क्लोनी के सैकड़ों छोटे बच्चे पैदल चलकर स्कूल पहुंचते हैं।
इनमें पाँच से लेकर दस साल तक की उम्र के मासूम शामिल हैं।
स्कूल बैग कंधे पर टांगे ये बच्चे जब इस रास्ते से गुजरते हैं तो हर पल एक डर साथ चलता है—अगर पैर फिसल गया तो ज़िंदगी खत्म।
स्थानीय लोग बताते हैं कि यह रास्ता बेहद सँकरा है और इसके किनारे पर न तो कोई सुरक्षा दीवार है, न रेलिंग।
बरसात के मौसम में तो यह और भी फिसलन भरा हो जाता है।
ऐसे में ज़रा-सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है।
ग्राम पंचायत और प्रशासन की बेरुख़ी
आनी के लोग लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि इस जगह पर सुरक्षा दीवार बनाई जाए।
लेकिन ग्राम पंचायत आनी और स्थानीय प्रशासन ने आज तक इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
नतीजा यह है कि लोग हर दिन अपनी और अपने बच्चों की जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं।
बताया जा रहा है कि ग्राम पंचायत की बैठकों से लेकर बीडीओ दफ्तर तक कई बार शिकायतें पहुंची हैं, मगर हर बार आश्वासन मिला और मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
यानी प्रशासन शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है।
केवल प्राथमिक स्कूल ही नहीं, सैकड़ों विद्यार्थी रोज़ गुजरते हैं
यह रास्ता सिर्फ प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए ही नहीं है।
पीएम श्री राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय आनी के सैकड़ों विद्यार्थी भी हर दिन यहीं से होकर निकलते हैं।
यानी छोटे-बड़े मिलाकर हर दिन हज़ार से अधिक लोग इस खतरनाक रास्ते से गुजरते हैं।
ऐसे में दुर्घटना का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
स्थानीय लोगों की चिंता
नाल देहरा क्लोनी के निवासी रोष व्यक्त करते हुए कहते हैं –
"हमारे बच्चे हर रोज़ मौत के मुंह में जाते हैं। हमें डर है कि कभी भी कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है। पंचायत और प्रशासन अगर आज नहीं चेता, तो कल बहुत देर हो जाएगी।"
एक अभिभावक ने बताया कि बरसात के दौरान हालात और भी खराब हो जाते हैं।
कई बार बच्चे फिसलकर गिरते-गिरते बचे हैं।
उन्होंने कहा – "हम सरकार से अपील करते हैं कि जल्द से जल्द यहाँ सुरक्षा दीवार बनाई जाए।"
क्यों ज़रूरी है सुरक्षा दीवार?
संकरा रास्ता – दो लोग एक साथ चलें तो जगह कम पड़ जाती है।
नीचे गहरी खाई – अगर कोई गिरा तो सीधा खाई में जाएगा।
बच्चों की आवाजाही – छोटे बच्चों से सावधानी की उम्मीद करना मुश्किल है।
स्कूल टाइम पर भीड़ – सुबह-शाम के वक्त दर्जनों बच्चे एक साथ गुजरते हैं।
फिसलन का खतरा – बरसात और बर्फबारी में स्थिति और खतरनाक।
यानी यह सिर्फ एक लोकल समस्या नहीं, बल्कि बड़ी मानवीय त्रासदी का इंतजार है।
जनता बनाम प्रशासन
स्थानीय लोग कहते हैं कि इस काम के लिए बहुत बड़ी लागत की भी ज़रूरत नहीं है।
थोड़े से बजट में यहाँ मजबूत सुरक्षा दीवार बनाई जा सकती है।
लेकिन पंचायत और प्रशासन का रवैया इतना उदासीन है कि मानो यहाँ इंसानों की ज़िंदगी की कोई कीमत ही न हो।
यह वही प्रशासन है जो लाखों-करोड़ों रुपये विकास योजनाओं पर खर्च करने का दावा करता है, मगर बच्चों की सुरक्षा जैसे मूलभूत मुद्दे पर चुप है।
अगर हादसा हुआ तो जिम्मेदार कौन?
अगर किसी दिन यह रास्ता किसी मासूम की जान ले लेता है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?
ग्राम पंचायत? स्थानीय प्रशासन? या फिर शिक्षा विभाग?
कानूनन देखा जाए तो यह जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन और पंचायत दोनों की बनती है।
क्योंकि दोनों ही संस्थाएँ क्षेत्र की सुरक्षा और विकास कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं।
समाधान क्या है?
तुरंत अस्थायी सुरक्षा उपाय – जब तक दीवार नहीं बनती, तब तक मजबूत लोहे की रेलिंग लगाई जाए।
पक्की सुरक्षा दीवार का निर्माण – पंचायत और प्रशासन मिलकर प्राथमिकता के आधार पर दीवार बनाएँ।
निगरानी और जवाबदेही – तय समय में काम पूरा न करने पर संबंधित अधिकारियों पर कार्यवाही हो।
जनसहभागिता – यदि प्रशासन विलंब करे तो स्थानीय लोग श्रमदान और सहयोग से शुरुआत कर सकते हैं।
अखण्ड भारत दर्पण (ABD)की अपील
अखण्ड भारत दर्पण (ABD) यह सवाल उठाता है कि क्या प्रशासन बच्चों की मौत का इंतजार कर रहा है?
क्या मासूमों की जान इतनी सस्ती है कि उनकी सुरक्षा दीवार तक प्रशासन नहीं बना सकता?
समय रहते अगर कदम नहीं उठाए गए तो यह लापरवाही किसी निर्दोष की ज़िंदगी छीन सकती है।
निष्कर्ष
आनी कस्बे के इस खतरनाक रास्ते ने हर किसी को चिंता में डाल दिया है।
यहाँ का हर बच्चा, हर अभिभावक और हर बुज़ुर्ग हर दिन मौत के साए में जीने को मजबूर है।
अब समय आ गया है कि पंचायत, प्रशासन और सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाएँ और इस समस्या का स्थायी समाधान करें।
क्योंकि हादसा होने के बाद आंसू पोंछने से बेहतर है—हादसा रोकने की तैयारी करना।
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