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सम्पादकीय: कितनी कारगर है हिमाचल प्रदेश में आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण?


हिमाचल प्रदेश भौगोलिक और पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील राज्य है। यहाँ की पहाड़ी संरचना, अनियमित वर्षा, जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेप ने प्राकृतिक आपदाओं की संभावना को और बढ़ा दिया है। आए दिन बादल फटने, भूस्खलन, भूकंप, हिमस्खलन, बाढ़ और जंगल की आग जैसी घटनाएँ प्रदेश की त्रासदी बनती जा रही हैं। ऐसे में आपदा प्रबंधन की प्रभावशीलता और प्रशिक्षण की कारगरता सबसे बड़ा प्रश्न है। क्या वास्तव में हिमाचल आपदाओं का मुकाबला करने के लिए तैयार है?

आपदा प्रबंधन का स्वरूप: हिमाचल की आवश्यकता

हिमाचल प्रदेश की 90 प्रतिशत से अधिक भूमि भूस्खलन की दृष्टि से अति संवेदनशील मानी जाती है। राज्य भूकंपीय जोन–IV और V में आता है, जहाँ कभी भी बड़े पैमाने पर भूकंप का खतरा मंडरा सकता है। 2023 और 2024 की बरसात ने इस खतरे को और उजागर कर दिया। सैकड़ों लोग मारे गए, हजारों मकान और सड़कें क्षतिग्रस्त हुईं। इन परिस्थितियों में आपदा प्रबंधन केवल सरकारी दायित्व नहीं बल्कि जनसुरक्षा का आधार बन जाता है।

आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य है–

लोगों को आपदा के समय त्वरित प्रतिक्रिया के लिए तैयार करना,

सरकारी और गैर-सरकारी तंत्र में तालमेल बैठाना,

तकनीकी और मानवीय संसाधनों का बेहतर उपयोग करना।

प्रशिक्षण की वर्तमान स्थिति

हिमाचल में आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण का ढांचा कागजों पर मजबूत दिखता है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA), जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA), गृह रक्षा, एनडीआरएफ और स्वयंसेवी संगठन इस क्षेत्र में सक्रिय बताए जाते हैं।

स्कूल और कॉलेज स्तर पर प्रशिक्षण

हर साल “आपदा प्रबंधन मॉक ड्रिल” आयोजित की जाती है।

छात्रों को भूकंप, आग और भूस्खलन से बचने की बुनियादी जानकारी दी जाती है।

परंतु यह गतिविधियाँ अधिकांशतः औपचारिकता तक सीमित रह जाती हैं।

ग्राम पंचायत और शहरी निकायों में प्रशिक्षण

पंचायत स्तर पर ग्राम आपदा प्रबंधन योजना बनाई जाती है।

स्थानीय लोगों को प्राथमिक चिकित्सा, बचाव और राहत तकनीकों से अवगत कराया जाता है।

लेकिन इन योजनाओं की समीक्षा और अभ्यास बहुत कम होता है।

सरकारी विभाग और कर्मचारी

पुलिस, होमगार्ड, फायर सर्विस और स्वास्थ्य कर्मियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाता है।

एनडीआरएफ और एसडीआरएफ समय-समय पर विशेष अभ्यास करते हैं।

किंतु, जब वास्तविक आपदा आती है, तो समन्वय की कमी साफ दिखाई देती है।

प्रशिक्षण की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिन्ह

यद्यपि प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, परंतु उनकी वास्तविक कारगरता कई कारणों से सीमित है:

औपचारिकता और दिखावा

मॉक ड्रिल अक्सर केवल रिपोर्ट पूरी करने के लिए होती हैं।

स्थानीय लोग इनमें सक्रिय भागीदारी नहीं करते।

अव्यवस्थित संसाधन

ग्रामीण क्षेत्रों में बचाव उपकरण और प्रशिक्षित मानव संसाधन का अभाव है।

बिजली, इंटरनेट और सड़क कनेक्टिविटी आपदा के समय बाधित हो जाती है।

स्थानीय स्तर पर जागरूकता की कमी

प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सूचना समय रहते आम नागरिकों तक नहीं पहुँचती।

भाषा और तकनीकी शब्दावली के कारण ग्रामीण लोग जानकारी को आत्मसात नहीं कर पाते।

आपदा के बाद का अनुभव

2023-24 की आपदाओं में देखा गया कि राहत कार्यों में देरी हुई।

प्रशासनिक तंत्र के बीच तालमेल की कमी उजागर हुई।

स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित लोगों की कमी महसूस हुई।

अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय तुलना

जापान, इंडोनेशिया और नेपाल जैसे आपदा-प्रवण देशों में आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण को शैक्षिक पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया गया है। वहाँ हर नागरिक किसी न किसी रूप में आपदा से निपटने की तकनीक जानता है।

भारत के अन्य राज्यों जैसे उत्तराखंड और ओडिशा ने भी आपदा प्रबंधन में कई अभिनव प्रयोग किए हैं। ओडिशा में 1999 की भीषण चक्रवात त्रासदी के बाद सरकार ने समुदाय आधारित प्रशिक्षण को अनिवार्य किया। परिणामस्वरूप बाद के तूफानों में जनहानि में भारी कमी आई।

हिमाचल को भी ऐसे मॉडलों से प्रेरणा लेकर प्रशिक्षण को अधिक व्यावहारिक और सामुदायिक बनाना होगा।

समाधान और सुधार की दिशा

हिमाचल प्रदेश में आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण को अधिक कारगर बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने आवश्यक हैं:

समुदाय आधारित प्रशिक्षण

हर ग्राम पंचायत में कम से कम 20–25 “आपदा मित्र” प्रशिक्षित किए जाएं।

इन्हें प्राथमिक चिकित्सा, रस्सी बचाव, मलबा हटाने और आपदा संचार में दक्ष बनाया जाए।

तकनीकी संसाधनों का उपयोग

मोबाइल ऐप और व्हाट्सऐप ग्रुप्स के माध्यम से अलर्ट और प्रशिक्षण सामग्री दी जाए।

जीआईएस और ड्रोन तकनीक को स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण में शामिल किया जाए।

स्कूल और कॉलेज स्तर पर अनिवार्य अभ्यास

आपदा प्रबंधन को शिक्षा का स्थायी हिस्सा बनाया जाए।

मॉक ड्रिल केवल औपचारिक न होकर व्यावहारिक और स्थानीय जोखिमों के अनुसार हों।

स्थानीय भाषाओं और संस्कृति में प्रशिक्षण

प्रशिक्षण सामग्री गद्य, गीत और नाट्य रूपांतरण में उपलब्ध कराई जाए।

इससे ग्रामीण और बुजुर्ग लोग भी आसानी से सीख सकेंगे।

निरंतर मूल्यांकन

जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण समय-समय पर पंचायत स्तर की योजनाओं की समीक्षा करे।

प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता पर तीसरे पक्ष से ऑडिट कराया जाए।

निष्कर्ष

हिमाचल प्रदेश में आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण की नींव रखी जा चुकी है, परंतु यह अभी तक पूर्ण रूप से कारगर नहीं हो पाया है। वास्तविक आपदाओं में प्रशिक्षण की कमी साफ झलकती है। यदि इसे औपचारिकता से निकालकर व्यावहारिकता, सामुदायिक सहभागिता और तकनीकी सहयोग के साथ लागू किया जाए, तो यह न केवल आपदाओं में जनहानि को कम करेगा बल्कि प्रदेश की सुरक्षा और विकास का मजबूत आधार भी बनेगा।

आज आवश्यकता है कि सरकार, प्रशासन, सामाजिक संगठन और आम नागरिक मिलकर आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण को गंभीरता से लें। क्योंकि हिमाचल में आपदा केवल प्राकृतिक चुनौती नहीं, बल्कि मानवीय अस्तित्व का प्रश्न है।

✍️ अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज़ सम्पादकीय टीम

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