डी पी रावत
अखण्ड भारत दर्पण ABD न्यूज
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने महिला कर्मचारियों के हित में अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि विशेष परिस्थितियों में तीसरे बच्चे के जन्म पर भी 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जा सकता है। यह आदेश टीजीटी शिक्षिका अनुराधा शर्मा की याचिका पर सुनाया गया, जिन्हें शिक्षा विभाग ने तीसरे बच्चे पर अवकाश देने से मना कर दिया था।
न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने याचिका स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि अनुराधा शर्मा 84 दिन (12 सप्ताह) के मातृत्व अवकाश की हकदार हैं। आमतौर पर नियमों के अनुसार दो बच्चों तक 180 दिन का मातृत्व अवकाश मिलता है, लेकिन कोर्ट ने मामले में मौजूद मानवीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह राहत प्रदान की।
पहले विवाह से दो बच्चे, दूसरा विवाह और विशेष परिस्थितियां
अनुराधा शर्मा के पहले विवाह से दो बेटियां हैं। घरेलू क्रूरता और परित्याग के कारण विवाह का तलाक हो गया और अनुराधा को दोनों बच्चियों का पालन-पोषण अकेले करना पड़ा। उनका दूसरा विवाह उस व्यक्ति से हुआ, जिसने अपनी पहली पत्नी और एकमात्र बच्चे को सड़क दुर्घटना में खो दिया था।
8 अगस्त 2025 को अनुराधा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जो इस दंपती का पहला बच्चा है, हालांकि अनुराधा का तीसरा जैविक बच्चा है।
याचिका में यह भी बताया गया कि पहले विवाह से जन्मी अनुराधा की दूसरी बेटी गंभीर तंत्रिका संबंधी बीमारी से पीड़ित है, जो उनकी परिस्थितियों को और अधिक जटिल बनाती है।
विभाग ने किया था आवेदन खारिज
अनुराधा ने मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था, पर शिक्षा विभाग ने मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 का हवाला देते हुए तीसरे बच्चे पर अवकाश देने से इनकार कर दिया। मामले के अदालत पहुंचने पर कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में नियमों के साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
कोर्ट ने कहा: नया विवाह, नया परिवार – पहला बच्चा
हाई कोर्ट ने माना कि दूसरे विवाह से जन्मा बच्चा इस दंपती का पहला बच्चा है। इसलिए महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता।
शिक्षा विभाग को आदेश
कोर्ट ने शिक्षा विभाग को निर्देश दिया है कि अनुराधा शर्मा को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश तुरंत मंजूर किया जाए और इसे उनके आवेदन की तिथि से प्रभावी माना जाए।
यह फैसला उन महिला कर्मचारियों के लिए मिसाल बनेगा, जो विशेष परिस्थितियों में समान समस्याओं का सामना करती हैं। अदालत ने कहा कि सरकारी सेवा नियमों की व्याख्या करते समय संवेदनशील व मानवीय पहलुओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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