डी० पी० रावत– आनी, जिला कुल्लू
हिमाचल प्रदेश में शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन जिला कुल्लू के आनी शिक्षा खण्ड की स्थिति तो और भी हैरान करने वाली है। यहां वर्षों से कई प्राथमिक, मिडिल, हाई और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में वही शिक्षक डटे हुए हैं जिनकी मजबूत राजनीतिक पैठ है।
जिन स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या नगण्य है, वहां दो से तीन शिक्षक तैनात हैं। जबकि दूसरी ओर जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या ज्यादा है, वहां केवल एक ही शिक्षक के सहारे पूरा स्कूल चल रहा है। नतीजा यह कि बच्चों की पढ़ाई और भविष्य दोनों बाधित हो रहे हैं।
बरसों से एक ही जगह जमे शिक्षक
आनी खण्ड में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां शिक्षक पूरे करियर में कभी भी दुर्गम क्षेत्रों में नहीं गए। कुछ शिक्षकों की पूरी सेवा एक ही स्कूल या तीन-चार किलोमीटर के दायरे में निकल गई। इनकी राजनीतिक पकड़ इतनी मजबूत है कि हर तबादला आदेश भी इन्हीं की सुविधा अनुसार होता है।
वहीं दूसरी तरफ, ऐसे भी शिक्षक हैं जिनकी कोई राजनीतिक पैठ नहीं है। इन्हें बरसों से दूर-दराज़ और कठिन क्षेत्रों में ही सेवा करनी पड़ रही है। चाहे तबादलों की नीतियां कितनी भी बार बदली हों, पर इन ईमानदार शिक्षकों का "दुर्गम इलाका प्रवास" कभी खत्म नहीं हुआ।
असमानता से बिगड़ रही शिक्षा व्यवस्था
इस असमान तैनाती ने आनी की शिक्षा व्यवस्था का संतुलन बिगाड़ दिया है।
जहां मुश्किल से 10 से 15 विद्यार्थी हैं, वहां 3 शिक्षक तैनात हैं।
वहीं जहां 60 से 70 विद्यार्थी पढ़ते हैं, वहां केवल एक शिक्षक है।
एक ही शिक्षक को गणित, हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान और अन्य विषय पढ़ाने पड़ते हैं।
इससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही। कई बार तो अध्यापक के बीमार या छुट्टी पर जाने से पूरा स्कूल ठप हो जाता है।
विद्यार्थियों और अभिभावकों की समस्या
गांव के अभिभावक सबसे ज्यादा परेशान हैं। उनका कहना है कि बच्चों का भविष्य इस खेल में दांव पर लगा हुआ है।
एक अभिभावक ने कहा—
"हमारे स्कूल में 65 बच्चे हैं, लेकिन केवल एक ही अध्यापक है। जब मास्टर साहब छुट्टी पर जाते हैं तो बच्चों को घर भेज दिया जाता है। यह शिक्षा का कैसा स्तर है?"
दूसरी ओर, कस्बे के पास के एक स्कूल में मुश्किल से 12 बच्चे हैं लेकिन वहां तीन अध्यापक मौजूद हैं। गांव के लोग इसे सीधी-सीधी नाइंसाफी मानते हैं।
तबादला नीति पर सवाल
हिमाचल सरकार ने कई बार "पारदर्शी तबादला नीति" लागू करने के दावे किए हैं, लेकिन आनी खण्ड के हालात उन दावों को झुठलाते हैं।
जिन शिक्षकों का राजनीतिक रसूख है, वे आरामदायक स्कूलों में टिके रहते हैं।
जिनकी कोई पहुंच नहीं, वे दुर्गम और कठिन स्कूलों में फंसे रहते हैं।
तबादला आदेश बनने से पहले ही प्रभावित अध्यापक को पता होता है कि उन्हें कहां भेजा जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सब नेताओं और विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।
शिक्षा विभाग की चुप्पी
कई बार ग्रामीणों और पंचायत प्रतिनिधियों ने इस समस्या को उठाया है। लेकिन शिक्षा विभाग केवल आंकड़े दिखाकर मामले को दबा देता है। हकीकत यह है कि कागजों में सब कुछ ठीक-ठाक दिखाया जाता है, जबकि जमीन पर स्थिति बिलकुल उलट है।
एक ग्रामीण ने तंज कसते हुए कहा—
"सरकारें बदलती हैं, अफसर बदलते हैं, लेकिन कुछ मास्टर कभी नहीं बदलते। वे उसी स्कूल में टिके रहते हैं जैसे वह उनकी निजी जागीर हो।"
बच्चों का भविष्य खतरे में
इस असमानता का सबसे बड़ा खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।जिन स्कूलों में शिक्षक ज्यादा हैं, वहां विद्यार्थियों की संख्या इतनी कम है कि पढ़ाई का स्तर बेहद नीचे है।
जिन स्कूलों में शिक्षक कम हैं, वहां बच्चों को विषयवार पढ़ाई नहीं मिल पाती। प्रतियोगी परीक्षाओं और उच्च शिक्षा की तैयारी में ये बच्चे पिछड़ रहे हैं।
परिणामस्वरूप, अभिभावक मजबूर होकर अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने लगे हैं, जिससे गरीब परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
ईमानदार शिक्षक परेशान
ईमानदार और बिना राजनीतिक पैठ वाले शिक्षक इस पूरी व्यवस्था से सबसे ज्यादा परेशान हैं।बरसों से उन्हें दुर्गम क्षेत्रों में ही सेवा करनी पड़ रही है।पारिवारिक जिम्मेदारियों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्हें कस्बों या मुख्यालय के नजदीक कभी पोस्टिंग नहीं मिलती।
उनका कहना है कि विभाग में "पहुंच" और "सिफारिश" के बिना तबादला असंभव है।
एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया—
"मैंने 18 साल की नौकरी में केवल एक बार ही कस्बे से 15 किलोमीटर के दायरे में पोस्टिंग पाई। बाकी का समय दूर-दराज़ स्कूलों में ही बीता है। जबकि मेरे कई साथी पूरे करियर में आनी कस्बे से बाहर नहीं गए।"
क्या कहता है शिक्षा विभाग?
शिक्षा विभाग के अधिकारी दावा करते हैं कि सब कुछ "तबादला नीति" के अनुसार ही हो रहा है। लेकिन सवाल उठता है कि अगर सब कुछ नीति के अनुसार है, तो फिर असमानता क्यों है?
ग्रामीणों का मानना है कि जब तक तबादला प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन और पारदर्शी नहीं होगी, तब तक यह समस्या खत्म नहीं होगी।
संभावित समाधान
समस्या का हल तभी संभव है जब सरकार और विभाग गंभीरता से कदम उठाएं।
1. छात्र संख्या के आधार पर शिक्षकों का संतुलित वितरण किया जाए।
2. तबादला प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और राजनीतिक दबाव से मुक्त किया जाए।
3. एक ही स्कूल या क्षेत्र में वर्षों से जमे शिक्षकों को तुरंत स्थानांतरित किया जाए।
4. दुर्गम क्षेत्रों में लंबे समय से सेवा दे रहे शिक्षकों को प्राथमिकता के आधार पर सुविधाजनक स्थानों पर भेजा जाए।
5. निरीक्षण और जवाबदेही की व्यवस्था सख्त हो।
आनी शिक्षा खण्ड का यह हाल केवल एक क्षेत्र का मसला नहीं है, बल्कि हिमाचल की शिक्षा व्यवस्था की गहरी खामियों की तस्वीर है। बच्चों का भविष्य इस राजनीति और अफसरशाही के गठजोड़ की भेंट चढ़ रहा है।
अगर सरकार और विभाग ने समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया तो आने वाले वर्षों में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह खोखली हो जाएगी। बच्चों को न तो सही शिक्षा मिलेगी और न ही समान अवसर।
इसलिए जरूरी है कि शिक्षा विभाग तुरंत संज्ञान ले और ईमानदारी से शिक्षकों की तैनाती में संतुलन स्थापित करे। वरना यह कहा जाने लगेगा कि सरकारी स्कूल शिक्षा देने नहीं, बल्कि शिक्षकों की "मनमानी और राजनीतिक रसूख" दिखाने के मंच भर हैं।
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