भूषण गुरुंग
22अक्टूबर चंबा
भटियात क्षेत्र के बकलोह में रहने वाले गोरखा समुदाय में दीपावली पर्व की शुरुआत दो दिन पहले ही हो गई है। पांच दिनों तक चलने वाला यह पर्व गोरखा समाज की आस्था और परंपराओं का जीवंत प्रतीक है।
दीपावली की रात को लक्ष्मी पूजा के बाद महिलाएं और युवतियां पारंपरिक भईलो खेलते हुए गीतों के माध्यम से घर-घर जाकर सुख, शांति और समृद्धि का संदेश देती हैं। घर के मालिक भी उन्हें दक्षिणा देकर आशीर्वाद स्वरूप विदा करते हैं।
लक्ष्मी पूजा से दो दिन पहले ही इस समुदाय में पर्व की शुरुआत काग तिहार (कौवा पूजन) और कुकुर तिहार (कुत्ता पूजन) से होती है। गोरखा समाज में कौवा और कुत्ता दोनों को यमराज के दूत माना जाता है, इसलिए इन दिनों उन्हें पूजकर सम्मान दिया जाता है।
लक्ष्मी पूजा के दिन गोरखा परिवार गाय को लक्ष्मी का स्वरूप मानकर पूजते हैं। आंगन को गोबर से लीपकर दीये जलाए जाते हैं और रात में विधिवत लक्ष्मी पूजा की जाती है।
अगले दिन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक भाई टीका पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर युवक और युवतियों की टोली घर-घर जाकर देउसरी गीत गाती है, जिसमें भाईचारे, स्वास्थ्य और समृद्धि का संदेश निहित होता है।
लोगों का कहना है कि पहले की तुलना में आज के युवा इन पारंपरिक आयोजनों से दूरी बना रहे हैं। इस परंपरा को जीवित रखने के लिए अब कई सामाजिक संस्थाओं की ओर से सामूहिक देउसरी कार्यक्रम का आयोजन भी किया जा रहा है।
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