डी.पी. रावत, आनी | 30 सितम्बर, आनी।
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िला के आनी उपमण्डल के चवाई क्षेत्र में सोमवार को माहौल उस समय गरमा गया जब हिमाचल किसान सभा ने स्थानीय वन परिक्षेत्राधिकारी (आर.ओ.) चवाई के खिलाफ़ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। किसानों और बागवानों ने आरोप लगाया कि विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों की अनदेखी करते हुए डगान निवासी बंसी लाल की भूमि पर लगी जाली को अवैध कब्ज़ा बताकर हटा दिया और कब्ज़े में ले लिया। इस कार्रवाई के विरोध में किसान सभा के नेता और पूर्व विधायक कॉमरेड राकेश सिंघा के नेतृत्व में किसानों ने करीब तीन घंटे तक चवाई बाज़ार से लेकर वन परिक्षेत्राधिकारी कार्यालय तक नारेबाज़ी करते हुए घेराव किया।
विवादित भूमि और जाली का मुद्दा
सूत्रों के अनुसार, बंसी लाल ने पूर्व में विवादित भूमि पर कब्ज़ा कर वहां सेब का बगीचा लगाया था। वन विभाग ने कार्रवाई कर उस कब्ज़े को हटवा दिया था, लेकिन कुछ समय बाद बंसी लाल ने फिर से उस भूमि पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने ओलावृष्टि से बचाव के लिए बगीचे के चारों ओर जाली डाल दी। वन विभाग ने इसे अवैध कब्ज़ा मानते हुए 13 मई 2025 को कार्रवाई की और उक्त जाली हटाकर कब्ज़े में ले ली।
यही मामला अब किसानों और विभाग के बीच टकराव का कारण बन गया है।
किसान सभा का आरोप – सुप्रीम कोर्ट आदेश की अवहेलना
किसान सभा नेताओं ने आरोप लगाया कि विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाई हैं।
किसान नेता कॉमरेड राकेश सिंघा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवम्बर 2024 को “बाबू राम बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य” (सिविल अपील संख्या 13362/2024) मामले में स्पष्ट आदेश दिए थे कि भूमि विवाद से जुड़े सभी मामलों में यथास्थिति बनाए रखी जाए।
उन्होंने दावा किया कि बंसी लाल ने भी इसी आदेश के तहत “स्टेटस-क्वो” लिया है और आदेश का पालन होना चाहिए। ऐसे में वन विभाग द्वारा जाली हटाना और कब्ज़े में लेना सीधे-सीधे अवमानना (Contempt of Court) है।
राकेश सिंघा का प्रार्थना पत्र और चेतावनी
किसान सभा की अगुवाई कर रहे राकेश सिंघा ने आर.ओ. चवाई को एक प्रार्थना पत्र सौंपा। इसमें मांग की गई कि बंसी लाल की जाली को तुरंत वापस किया जाए और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जाए।
उन्होंने कहा कि यदि विभाग ने जाली नहीं लौटाई तो किसान सभा चुप नहीं बैठेगी। वे चवाई के आर.ओ. कार्यालय परिसर के साथ-साथ शिमला सचिवालय स्थित प्रधान सचिव (वन) कार्यालय के बाहर भी धरना देंगे।
सिंघा ने यह भी घोषणा की कि वे आर.ओ. चवाई के निलंबन के लिए कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और कोर्ट में अवमानना याचिका भी दायर करेंगे।
विभागीय प्रक्रिया पर सवाल
सिंघा ने इस मौके पर विभागीय प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में अब तक कई क्षेत्रों में बंदोबस्त कार्य पूरा नहीं हुआ है।
ऐसे में न तो भू-राजस्व विभाग और न ही वन विभाग भूमि की वास्तविक सीमाओं को लेकर स्पष्ट स्थिति रखता है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिना भुर्जियां गाड़े और जमीन का सही रिकॉर्ड स्पष्ट किए, विभाग किसानों को अवैध कब्ज़ाधारी बताकर कार्रवाई कर रहा है।
उनके अनुसार यह न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि किसानों की आजीविका पर सीधा प्रहार है।
वन परिक्षेत्राधिकारी का पक्ष
वहीं, वन परिक्षेत्राधिकारी चवाई रतन चन्द ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा कि विभाग ने पूरी कार्रवाई नियमों और प्रावधानों के तहत की है।
उनका कहना था कि जाली हटाने का निर्णय विभागीय नियमों के अनुसार लिया गया और इसमें किसी प्रकार की अवैधता नहीं है।
उन्होंने यह भी बताया कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए वह शीघ्र ही वन मण्डल अधिकारी (डीएफ़ओ) आनी-लुहरी से पत्राचार करेंगे और अंतिम निर्णय डीएफ़ओ स्तर पर लिया जाएगा।
किसानों की चेतावनी – संघर्ष होगा और तेज
प्रदर्शन कर रहे किसानों और बागवानों ने साफ चेतावनी दी कि यदि बंसी लाल की जाली वापस नहीं की गई और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित नहीं हुआ तो किसान सभा संघर्ष को और व्यापक स्तर पर ले जाएगी।
उनका कहना था कि जब तक विभाग सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करता, तब तक विरोध आंदोलन जारी रहेगा।
कानून बनाम ज़मीनी हकीकत
यह पूरा विवाद हिमाचल प्रदेश में भूमि कब्ज़े और सरकारी कार्रवाई के बीच चल रहे पुराने टकराव की एक और कड़ी है।
एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि भूमि विवादों पर यथास्थिति बनाए रखी जाए, दूसरी ओर विभाग अपने स्तर पर कार्रवाई कर रहा है।
इस टकराव में सबसे ज्यादा नुकसान स्थानीय किसानों और बागवानों का हो रहा है, जिनकी मेहनत से तैयार फसलें और बगीचे विभागीय कार्यवाहियों के घेरे में आ जाते हैं।
निष्कर्ष
चवाई में हुआ यह घेराव केवल बंसी लाल की जाली तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन सभी किसानों और बागवानों की आवाज़ है, जो वर्षों से विभागीय कार्यवाहियों और अस्पष्ट नीतियों से परेशान हैं।
अब असली सवाल यह है कि क्या विभाग डीएफ़ओ स्तर पर किसानों की मांगों पर विचार करेगा और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करेगा या मामला और तूल पकड़ेगा।
फिलहाल इतना तय है कि यदि समाधान शीघ्र नहीं निकला तो किसान सभा इस संघर्ष को राज्यव्यापी आंदोलन का रूप दे सकती है।
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