डी० पी० रावत, सम्पादक
अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज़
20 नवम्बर, निरमण्ड
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले के बाह्य सिराज क्षेत्र में उपमण्डल मुख्यालय निरमण्ड की राच की द्याऊढ़ी में इस वर्ष भी बूढ़ी दीवाली मेला मार्गशीर्ष अमावस्या की रात परम्परागत विधि-विधान के साथ मनाया गया। पूरी रात चले कार्यक्रम में देव–दानव संघर्ष का मंचन हुआ तथा ऋग्वैदिक काल की अनुष्ठानिक रस्मों का निर्वहन किया गया।
रातभर लोक काव्य—जिसे स्थानीय बोली में “काव” और इसके 11 पदों को “कंडी” कहा जाता है—के साथ रामायण, महाभारत और ऋग्वैदिक घटनाओं का जीवंत मंचन दर्शकों को प्राचीन काल में ले गया।
इन्द्र–वृत्र युद्ध से आरम्भ हुआ देव–दानव संघर्ष
लोक परंपरा के अनुसार, राच की द्याऊढ़ी में मुख्य मंचन देवराज इन्द्र और वृत्रासुर के मध्य अग्नि के अधिकार को लेकर हुए संघर्ष का प्रतीक है।
परम्परागत रूप से इन्द्र की सेना की भूमिका गड़ियों (क्षत्रिय वर्ग) और असुरों की भूमिका स्थानीय निम्न वर्ग के लोगों द्वारा निभाई जाती थी।
हालाँकि समय के साथ सामाजिक संरचना और जागरूकता बढ़ने से इन भूमिकाओं में बड़ा बदलाव आया है और अब केवल कुछ गिने-चुने लोग ही इस परम्परा को निभाते दिखाई देते हैं।
देव–दानव संघर्ष से जुड़ी पाँच प्रमुख लोकमान्यताएँ
1. ऋग्वैदिक कथा: अदिति पुत्र इन्द्र का अग्नि पर अधिकार और दनू पुत्र वृत्र का जल तथा अग्नि पर आधिपत्य पाने का संघर्ष।
2. महाभारत कथा: कौरव–पाण्डव युद्ध की प्रतीकात्मक व्याख्या।
3. रामायण से संबंध: लंका दहन के प्रसंग से इस परम्परा को जोड़ा जाता है।
4. वामनावतार: राजा बलि के सौवें यज्ञ और भगवान विष्णु द्वारा तीन पग में पृथ्वी नापने की कथा।
5. महाभारत युद्ध के बाद दाह-संस्कार: रात में अग्निपुंज के प्रज्वलन और पिण्डदान की परंपरा का संकेत।
11 कंडियों में गूंजा प्राचीन लोक काव्य
पूरी रात “काव” के 11 पदों के साथ संघर्ष और महागाथाओं का मंचन हुआ—
1️⃣ पहली कंडी — स्थानीय देवी-देवताओं का निमंत्रण
2️⃣ दूसरी — सीता स्वयंवर
3️⃣ तीसरी — राम वनवास
4️⃣ चौथी — लंका दहन
5️⃣ पाँचवीं — कीचक वध
6️⃣ छठी — दखन–गोगर विवाद, वृत्रासुर सेना की अग्नि मशाल (डेरच)
7️⃣ सातवीं — कौरव-पाण्डव संघर्ष
8️⃣ आठवीं — जयद्रथ वध
9️⃣ नौवीं — कर्ण संग्राम एवं कर्ण वध; डेरच की छीनाझपटी
🔟 दसवीं — भगवान श्रीकृष्ण की पाण्डवों से विदाई
1️⃣1️⃣ ग्यारहवीं — रात खुलते ही द्याऊढ़ी का विसर्जन
रातभर चले इन मनमोहक दृश्यों ने दर्शकों को लोक धार्मिकता, श्रद्धा और संस्कृति के मूल से जोड़ दिया।
निरमण्ड की राच की द्याऊढ़ी में हर वर्ष की तरह इस बार भी आस्था, इतिहास और लोकपरंपराओं का संगम दिखाई दिया, जो बाह्य सिराज की अनूठी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।



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