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पहाड़ी काष्ठ कला के शिल्पी धनूराम नहीं रहे — 93 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस

 अटल बिहारी वाजपेयी और वीरभद्र सिंह को भी भेंट की थीं अपनी कलाकृतियाँ

 परस राम भारती

 तीर्थन घाटी, गुशेनी


कुल्लू जिले की बंजार उपमंडल की श्रीकोट पंचायत के मशहूर काष्ठ शिल्पकार धनूराम (93) का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनके निधन से न केवल उनका परिवार, बल्कि पूरा कला जगत शोक में डूब गया है।

धनूराम को पहाड़ी लकड़ी कला का जीवित प्रतीक माना जाता था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा लकड़ी की मूर्तियों और पारंपरिक पहाड़ी कला को संवारने में बिताया। भगवान शिव, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा सहित अनेक देवी-देवताओं की उनकी रचनाएँ ऐसी जीवंतता लिए होती थीं कि देखने वाला भावविभोर हो उठता था।



उन्होंने अपनी कला से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भी अपनी हाथों से बनी मूर्तियाँ भेंट की थीं। उनकी कलाकृतियाँ आज भी कुल्लू घाटी के मंदिरों, धार्मिक स्थलों और प्रदर्शनियों में सजी हुई हैं।



धनूराम को “पहाड़ी कला का अंतिम स्तंभ” कहा जाता था। उन्होंने उस दौर में भी पारंपरिक मूर्तिकला को जिंदा रखा, जब यह कला धीरे-धीरे लुप्त हो रही थी। वे कुल्लू दशहरा में हर वर्ष अपनी कलाकृतियाँ प्रदर्शित करते थे, जहाँ लोग उनकी कला के मुरीद हो जाते थे।



स्थानीय लोगों के अनुसार, धनूराम कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता भी रहे। उनका राजा वीरभद्र सिंह और सत्य प्रकाश ठाकुर जैसे नेताओं से गहरा संबंध था। लोग कहते हैं — “धनूराम केवल मूर्तियाँ नहीं गढ़ते थे, वे उनमें प्राण फूँक देते थे।”

उनका अंतिम संस्कार रविवार को उनके पैतृक गांव श्रीकोट में किया जाएगा।

धनूराम के निधन से घाटी ने न केवल एक कलाकार, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान का रक्षक खो दिया है।

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