Breaking News

10/recent/ticker-posts

CJI पर जूता फेंकने की घटना की AILU ने की कड़ी निंदा, कहा – न्यायपालिका की गरिमा पर हमला, लोकतंत्र के मूल्यों पर चोट

 

 डी.पी. रावत, अखण्ड भारत दर्पण 

शिमला, 10 अक्टूबर 2025


सर्वोच्च न्यायालय में देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर जूता फेंकने की हालिया घटना ने पूरे विधि जगत और संवैधानिक संस्थाओं को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना को लेकर देशभर में निंदा की लहर है। इसी क्रम में ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (AILU), राज्य समिति, हिमाचल प्रदेश ने इस शर्मनाक कृत्य की तीखी भर्त्सना की है।


राज्य समिति ने शुक्रवार को भारत की माननीय राष्ट्रपति महोदया को एक ज्ञापन भेजकर इस घटना को न्यायपालिका की गरिमा, स्वतंत्रता और संविधान की आत्मा पर सीधा प्रहार बताया। ज्ञापन में कहा गया है कि 6 अक्टूबर, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अदालत में हुई यह घटना केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र पर हमला है।


न्यायपालिका पर हमला, संविधान की आत्मा पर प्रहार” — AILU

AILU के राज्य अध्यक्ष अधिवक्ता निरंजन वर्मा और राज्य सचिव अधिवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि यह घटना न केवल असहनीय है, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त धर्मनिरपेक्षता, न्यायिक स्वतंत्रता और शालीनता जैसे मूल्यों को कमज़ोर करने की साज़िश प्रतीत होती है।

उन्होंने कहा कि “न्यायपालिका लोकतंत्र का वह स्तंभ है, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। यदि न्याय के मंदिर में इस प्रकार का आचरण होता है, तो यह हर संवेदनशील नागरिक के लिए गहन चिंता का विषय है।”


वर्मा दंपति ने कहा कि माननीय मुख्य न्यायाधीश ने जिस संयम, धैर्य और गरिमा के साथ इस अपमानजनक स्थिति का सामना किया, वह सम्पूर्ण विधि समुदाय के लिए अनुकरणीय उदाहरण है। उन्होंने कहा कि “यह घटना न केवल विधि व्यवसाय के लिए कलंक है, बल्कि उस संवैधानिक मर्यादा का भी उल्लंघन है जो नागरिकों को शालीन असहमति का अधिकार देती है।”

“संविधान असहमति देता है, हिंसा नहीं” — AILU

AILU ने अपने ज्ञापन में कहा कि भारतीय संविधान हर नागरिक को असहमति प्रकट करने का अधिकार देता है, परंतु वह असहमति शांतिपूर्ण और मर्यादित ढंग से होनी चाहिए। न्यायालय के समक्ष हिंसक या अपमानजनक आचरण लोकतांत्रिक परंपराओं के विपरीत है।

“न्यायपालिका संविधान की रक्षा की अंतिम संस्था है, अतः उसकी गरिमा को बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का नैतिक कर्तव्य है। यदि न्याय के मंदिर की मर्यादा टूटेगी तो लोकतंत्र की नींव हिल जाएगी,” AILU ने कहा।

राज्य समिति ने इसे “न्यायिक स्वतंत्रता को भयभीत करने का प्रयास” करार दिया और कहा कि यह घटना किसी असंतोष का परिणाम नहीं, बल्कि लोकतंत्र को अस्थिर करने की सोच का हिस्सा हो सकती है।

 AILU की तीन प्रमुख माँगें

AILU हिमाचल प्रदेश राज्य समिति ने अपने ज्ञापन में राष्ट्रपति महोदया से तीन प्रमुख मांगें रखीं —

1️⃣ सामूहिक निंदा की अपील: संविधान में आस्था रखने वाले सभी नागरिकों, सामाजिक संगठनों और विधि बिरादरी से अपील की गई कि वे इस घटना और इसके पीछे की मंशा की सामूहिक निंदा करें।

2️⃣ लोकतांत्रिक विरोध की एकजुटता: वकील समुदाय और न्यायपालिका से जुड़े सभी लोग इस घटना के विरोध में लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी एकजुटता प्रदर्शित करें।

3️⃣ निष्पक्ष जांच व दंडात्मक कार्रवाई: संबंधित प्राधिकरण इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को दंडित करें ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाने का साहस न करे।

AILU ने यह भी कहा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए न्यायालय परिसरों में सुरक्षा व्यवस्थाओं की समीक्षा की जानी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश की गरिमा लोकतंत्र का आईना”

AILU नेताओं ने मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने जिस परिपक्वता और शांत स्वभाव से स्थिति को संभाला, वह भारतीय न्यायपालिका की गरिमा और परंपरा का प्रतीक है।

“मुख्य न्यायाधीश का संयमित आचरण बताता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था केवल कानून का ही नहीं बल्कि नैतिकता और धैर्य का भी उदाहरण है,” अधिवक्ता निरंजन वर्मा ने कहा।

संगठन ने चेताया कि यदि समाज में ऐसी असहिष्णुता को प्रोत्साहन मिला, तो लोकतंत्र की आत्मा घायल हो जाएगी। उन्होंने कहा —

“संविधान ने हमें असहमति की स्वतंत्रता दी है, लेकिन उसे हिंसा या अपमान में बदलना संविधान के साथ विश्वासघात है।”

“यह केवल मुख्य न्यायाधीश का नहीं, पूरे संविधान का अपमान है”

AILU के ज्ञापन में स्पष्ट कहा गया है कि यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति या पद की नहीं, बल्कि पूरे संविधान और न्यायपालिका तंत्र की अवमानना है। संगठन ने कहा कि ऐसे कृत्य न केवल संस्थाओं पर लोगों के विश्वास को कमजोर करते हैं, बल्कि न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करते हैं।

ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया कि देश के वकील समुदाय की जिम्मेदारी केवल न्यायालय में पैरवी तक सीमित नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा में भी उनकी अहम भूमिका है।

 समाज और वकील बिरादरी से अपील

AILU ने समाज के सभी वर्गों, विशेषकर युवाओं और विधि छात्रों से आह्वान किया कि वे संविधान के प्रति निष्ठा और न्यायपालिका के प्रति सम्मान की भावना को बनाए रखें।

“आज आवश्यकता है कि विधि समुदाय न केवल न्यायालयों में बल्कि समाज में भी संविधान की मर्यादा और न्यायिक आस्था को मजबूत करने की दिशा में कार्य करे,” अधिवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा।

 निष्कर्ष

AILU राज्य समिति का यह बयान उस समय आया है जब पूरे देश में इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। कई वरिष्ठ न्यायविदों, पूर्व जजों और बार एसोसिएशनों ने इसे “भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय” बताया है।

AILU ने अंत में कहा कि —

“न्यायपालिका पर आस्था रखना केवल विधि समुदाय का ही नहीं, बल्कि हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है। यदि हम संविधान की गरिमा की रक्षा नहीं करेंगे, तो लोकतंत्र की आत्मा को बचाए रखना असंभव हो जाएगा।”

प्रेषक:

ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (AILU)

राज्य समिति, हिमाचल प्रदेश

Post a Comment

0 Comments