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विद्रोह के स्वरों को ताकत देने वाले कवि थे नजरूल : प्रदीप बनर्जी


  * चित्तरंजन के विवेकानंद पार्क में याद किये गये विद्रोही कवि * आयोजन का संचालन किया विराज गांगुली ने * सुभाष बोस ने किया धन्यवाद ज्ञापन

 (पारो शैवलिनी की रिपोर्ट) चित्तरंजन रेलनगरी के मुख्य डाकघर के ठीक सामने बने विवेकानंद उद्यान में सोमवार की सुबह लगभग सात बजे से काजी नजरूल इस्लाम की जयंती पर उन्हें याद किया गया। चित्तरंजन-रूपनारायण सांस्कृतिक चक्र द्वारा आयोजित इस आयोजन में पारो शैवलिनी,सचिन शर्मा,प्रदीप बनर्जी,स्वदेश चटर्जी,बासंती मजूमदार,पिनाक मजूमदार आदि ने अपनी स्वरचित कविता,गीत,आवृति का सस्वर पाठ के माध्यम से कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर व विद्रोही कवि नजरूल इस्लाम को याद किया। कवि प्रदीप बनर्जी ने कहा महजवी वातावरण में पले-बढ़े नजरूल सही मायने में विद्रोह के स्वरों को ताकत देने वाले कवि थे नजरूल इस्लाम। समाज की कुरीतियों को अपने ना सिर्फ रचनाओं से अपितु सशरीर भी लड़ने को हमेशा तत्पर रहते थे वो। वहीँ,स्वदेश चटर्जी ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में नफरत फैलाने वालों को मुँह तोड़ के जवाब देने की बात कही। उन्होंने कहा,जब गांधी जी अंग्रेजों के खिलाफ चरखा से सूत काटने की बात करते थे तो काजी ने एकबार उनसे पूछा कि क्या ये संभव है।तब गांधी ने कहा कि यह तो मैं नहीं जानता कि अंग्रेज इससे डर कर देश छोड़ कर भाग जायेंगे।हां,इतना जानता हूँ कि चरखा से हम लोगों को एकजुट जरूर कर सकते हैं। अंत में,स्वरचित कविता बदलाव का पाठ करते हुए पत्रकार पारो शैवलिनी ने पढ़ा " हम बदलाव माँगते हैं,सामाजिक न्याय माँगते हैं,बलात्कार के मामले में,न्यायिक बदलाव माँगते हैं,बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ नारे को हटाकर,दहेज़ हटाओ,बेटी बचाओ के सुर में बुलंद कर एक मशाल जला कर,दहेज़ के मामले में,कानूनी बदलाव माँगते हैं।" आयोजन का संचालन बंगला व हिन्दी रंगकर्मी विराज गांगुली ने किया जबकि सुभाष बोस ने धन्यवाद ज्ञापन किया।


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